BA Semester-2 - History - History of Medival India 1206-1757 AD - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई. - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई.

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2720
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बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई.

अध्याय - 10 
भारत में सूफीवाद का विकास, भक्ति आन्दोलन एवं उत्तर भारत में सुदृढ़ीकरण 

सल्तनत काल में सक्रिय एकमात्र दूसरा सिलसिला सुहरावर्दी था जिसका मुख्यालय मुल्तान में था और बाद में सिन्ध तक फैला ( पहला चिश्तिया था)। इसके बाद फिरदौसी सिलसिला आता है जो मुख्यतः बिहार तक सीमित था। इसकी स्थापना शेख बदरूद्दीन समरकन्दी ने की थी और 13वीं सदी के आस-पास आध्यात्मिक साहित्य के बहुसर्जक रचनाकार शेख सरफुद्दीन यहया मुनेरी ने इसका प्रचार-प्रसार किया। 15वीं सदी के मध्य में कादिरिया और सत्तारी सिलसिले शुरू हुए। उत्तर भारत के अग्रणी सूफी सन्त शेख निजामुद्दीन औलिया थे, वे तुगलक सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के समकालीन थे। शेख के प्रिय शिष्य अमीर खुसरो थे। औलिया के उत्तराधिकारी पूरे देश में फैले हुए थे, जिनमें से शेख नासिरुद्दीन महमूद जो बाद में 'चिराग-ए-दिल्ली के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनके एक शिष्य सैयद मुहम्मद गेसू दराज गुलबर्गा में बस गए और दुखियों दरिद्रों की सेवा करने के कारण 'बन्दानवाज' कहलाए। वे उर्दू भाषा के प्रारम्भिक कवियों तथा लेखकों में से एक थे।

शाबा नियामतुल्लाह कादिरी ने 'कादिरी' व शाह अब्दुल्लाह सुत्तारी ने 'सत्तारिया' शाखा प्रारम्भ किया। कादिरिया शाखा उत्तरप्रदेश व दक्षिण में फैली तथा सत्तारिया शाखा मध्य प्रदेश व गुजरात में फैली। अकबर के काल में शेख सलीम चिश्ती, ख्वाजा बाकी बिल्लाह ने कार्य किए। दाराशिकोह कादिरिया सिलसिले का अनुयायी था और उसने लाहौर में मियाँ मीर से भेंट की दाराशिकोह की फारसी रचना मजमुलबहरैन में सूफी विचारों और हिन्दू ब्रह्माण्ड विज्ञान पर रोचक परिचर्चाएं मिलती हैं। मध्यकाल में कई धार्मिक विचारकों तथा सुधारकों ने भारत के सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से भक्ति को साधन बनाकर एक आन्दोलन प्रारम्भ किया जो भक्ति आन्दोलन। के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यद्यपि भारतीय जन- जीवन में नया नहीं था किन्तु इस्लाम की उपस्थिति से इसे वेग प्राप्त हुआ तथा यह जनान्दोलन में बदल गया। दक्षिण भारत में भक्ति की अवधारणा उस समय सुदृढ़ पीठ पर प्रतिष्ठापित हुई, जब शंकराचार्य ने वेदांत या अद्वैत की विचारधारा का पुनः प्रवर्तन किया। शंकराचार्य के उपरान्त बारह तमिल वैष्णव सन्तों ने भक्ति को काफी लोकप्रिय बनाया। इसके आरम्भिक प्रणेता रामानुज थे, जिनके शिष्य रामानन्द भक्ति आन्दोलन को उत्तर भारत की ओर लाए।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • 'सूफी' शब्द की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में कई मत हैं। प्रथम मतानुसार, सूफी सन्त निर्धनता के प्रतीक स्वरूप मोटे ऊन (सूफ) के वस्त्र धारणा करते थे, अतः वे सूफी कहलाए। दूसरे मतानुसार, इसकी उत्पत्ति 'सफा' से हुई है। कुछ विद्वानों ने इसकी उत्पत्ति ग्रीक शब्द सोफिया (ज्ञान) से मानी है।
  • सूफीमत इस्लामी रहस्यवाद के लिए प्रयुक्त होने वाला एक सामान्य शब्द है।
  • हिजरी संवत् की प्रथम दो शताब्दियों के मुस्लिम रहस्यवादी या सूफी ऐसे संचासी तथा धर्मपरायण व्यक्ति थे जो तोबा (प्रायश्चित) तथा तवक्कुल (परमात्मा में विश्वास ) के सिद्धान्तों पर अत्यधिक बल देते थे।
  • पीरीमुरीदी नाम से ज्ञात आध्यात्मिक गुरु के आदेश की पद्धति सूफीमत में प्रचलित थी।
  • 17वीं सदी में सूफीमत ने साम्प्रदायिक भेदभाव की जंजीरों को छिन्न-भिन्न कर दिया।
  • यारी साहब के नाम से दिल्ली के एक ऐसे ही सूफी सन्त (1668-1725) हुए, वे अपने जीवन पर्यन्त साम्प्रदायिक संकीर्णता से मुक्त रहे।
  • इस्लाम में सूफीमत का विकास किसी धर्म में होने वाले रहस्यवादी आंदोलन की सफलता तथा लोकप्रियता का महत्वपूर्ण और दिलचस्प इतिहास है।
  • सूफी सहायक को ब्रह्मज्ञानी तथा अध्यात्मवादी माना जाता रहा है। वैसे भी 'सूफी' वही कहलाता है जो तसव्वुफ का अनुयायी और सारे धर्मों से प्रेम करने वाला होता है।
  • शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के बहुदेववाद के विरुद्ध एकेश्वरवाद का बिगुल बजाया।
  • भक्ति की धारणा का अर्थ एकेश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा है। भक्त की आराधना का उद्देश्य मुक्ति के लिए ईश्वर की कृपा प्राप्त करना है।
  • भक्ति आन्दोलन मुख्यतः एकेश्वरवादी पंथ था और भक्त एक ही ईश्वर की उपासना करते थे, जो या तो सगुण रूप में हो सकता था या निर्गुण रूप में।
  • भक्ति आन्दोलन समतावादी आन्दोलन था जिसने जाति या धर्म पर आधारित भेद-भाव का पूर्णतया विरोध किया।
  • भक्ति आन्दोलन ने पुरोहित वर्ग के प्रभुत्व तथा कर्मकाण्डों की भी निन्दा की।
  • भक्ति सन्तों ने जनसाधारण की सामान्य भाषा में उपदेश दिया और इसीलिए आधुनिक भारतीय भाषाओं जैसे हिन्दी, मराठी, बंगाली और गुजराती के विकास में अत्यधिक योगदान दिया।
  • रामानुज (बारहवीं शताब्दी) - ये भक्ति आंदोलन के प्रारम्भिक प्रतिपादक थे जो दक्षिण में बारहवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में सक्रिय रहे थे। उनके विचारों से लोगों के उत्थान के लिए शक्तिशाली जनान्दोलन की नींव पड़ी।
  • रामानन्द के अत्यन्त उग्र सुधारवादी शिष्य कबीर ने अपने सुप्रसिद्ध गुरु रामानन्द के सामाजिक दर्शन को सुनिश्चित रूप दिया। कबीर ने परस्पर विरोधी मतों में धार्मिक तथा राष्ट्रीय समन्वय लाने का गंभीर प्रयास किया।
  • गुरुनानक (1469-1538)- अपने समय की उदार दृष्टि में पूरी तरह भाग लेते हुए नानक ने हिन्दू तथा मुस्लिम भक्ति को समान रूप से व्यक्त करने के लिए सक्षम धर्म की खोज की।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय -1 तुर्क
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 खिलजी
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 तुगलक वंश
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 लोदी वंश
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 मुगल : बाबर, हूमायूँ, प्रशासन एवं भू-राजस्व व्यवस्था विशेष सन्दर्भ में शेरशाह का अन्तर्मन
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 अकबर से शाहजहाँ : मनसबदारी, राजपूत एवं महाराणा प्रताप के सम्बन्ध व धार्मिक नीति
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 औरंगजेब
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 शिवाजी के अधीन मराठाओं के उदय का संक्षिप्त परिचय
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 मुगलकाल में वास्तु एवं चित्रकला का विकास
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 भारत में सूफीवाद का विकास, भक्ति आन्दोलन एवं उत्तर भारत में सुदृढ़ीकरण
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला

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